सब कुछ तो है क्या ढूँढ़ती रहती हैं निगाहें,
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यों नहीं जाता,
वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में,
जो दूर है, वो दिल से उतर क्यों नहीं जाता,
वो ख़्वाब जो बरसों से न चेहरा, न बदन है,
वो ख़्वाब हवाओं में बिखर क्यों नहीं जाता..