तंग आ चुके हैं कश्मकश-ए-ज़िन्दगी से हम,
ठुकरा ना दें जहाँ को कहीं बेदिली से हम,
आज आईने के सामने खड़े होकर खुद से माफ़ी मांगी हमने,
दूसरों को खुश करते करते खूब रोये हैं हम..
तंग आ चुके हैं कश्मकश-ए-ज़िन्दगी से हम,
ठुकरा ना दें जहाँ को कहीं बेदिली से हम,
आज आईने के सामने खड़े होकर खुद से माफ़ी मांगी हमने,
दूसरों को खुश करते करते खूब रोये हैं हम..