जो अब तक न हुआ वो इस बार हो जाये ,
मैं मुझसे मिलूं और खुद से प्यार हो जाये,
किसी महफ़िल में बैठी रहूंगी, मसखरे का नक़ाब लगाए,
हंसी के ठहाकों के पीछे कई राज़ दिल के छुपाये,
नक़ाब हटे और हक़ीक़त का दीदार हो जाये,
मैं मुझसे मिलूं और खुदसे प्यार हो जाये,
या बादलों संग उड़ती मिलूंगी ,रंगीन खवाबों के पंख लगाए,
थकते कबधो पर फिर भी कई आरज़ू के बोझ उठाये,
बोझ गिरे और हलके ख्वाबों से दिल खुशगवार हो जाये,
मैं मुझसे मिलूं और खुदसे प्यार हो जाये,
जो अब तक न हुआ वो इस बार हो जाये।।