कुछ कुछ रूठे से, लगते हो,
शायद अंदर तक टूटे लगते हो ॥
बिखरे टुकड़ो की आहट सुनी है मैंने
ये किसके हाथों से छूटे लगते हो ॥
नम आँखें सब बयाँ, कर रही है,
अपनों के हाथों से लूटे लगते हो ॥
जोड़ दूँ ज़रा क़रीब आओ तुम मेरे
तुम जहाँ जहाँ से, टूटे लगते हो ॥
मुस्कुराकर ग़म अपना छुपा रहे हो
मेरी तरह तुम भी झूठे लगते हो ॥
आओ तुम्हें इक नाम मैं दे दूँ,
तुम गुलमोहर के बूटे लगते हो ॥