दर्द देकर भी वो दिल के क़रीब रहते हैं,
ज़ख्म देते हैं क्यूँ, हम दोस्त जिन्हें कहते हैं
उनकी मुस्कान पे हम अपना दिल गवाँ बैठे
एक मुस्कान से हम लाखों सितम सहते हैं
कल तलक लगता था नसीब कोई चीज़ नहीं
आपके साथ को अब हम नसीब कहते हैं
जाने किस बात की सज़ा है दी मोहब्बत ने
अब न जीते हैं सनम और हम न मरते हैं
हम भी वाकिफ़ हैं सनम आपके हाल-ए-दिल से
एक क़ैदी के लिए बेकरार रहते हैं