खुशियाँ कम और अरमान बहुत हैं,
जिसे भी देखिए यहाँ हैरान बहुत है।
करीब से देखा तो है रेत का घर,
दूर से मगर उनकी शान बहुत है।
कहते है सच का कोई सानी नही,
आज तो झूठ की आन बान बहुत है।
मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी,
यूँ तो कहने को इंसान बहुत हैं।
वक्त पे न पहचाने ये अलग बात,
वैसे तो शहर में अपनी पहचान बहुत है।
really Special Poem for Every one…. Thanks for Sharing
Realiy nice poem for every one.
Reality very deeply msg getting the poem.