वो हमसफ़र था मगर उससे हमनवायी न थी ,
कहीं धुप छाँव का आलम रहा , जुदाई ना थी,
मोहब्बत का सफर इस तरह भी गुज़रा था,
शिकस्ता दिल थे मुसाफिर, शिकस्ता पायी न थी,
भिच्छाड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल,
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी..
वो हमसफ़र था मगर उससे हमनवायी न थी ,
कहीं धुप छाँव का आलम रहा , जुदाई ना थी,
मोहब्बत का सफर इस तरह भी गुज़रा था,
शिकस्ता दिल थे मुसाफिर, शिकस्ता पायी न थी,
भिच्छाड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल,
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी..